वसंत में जिसे सब अपना कहते है
वसंत में जिसे सब अपना कहते है, पतझड़ में कौन किसका हाल पूछता है।
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वसंत में जिसे सब अपना कहते है, पतझड़ में कौन किसका हाल पूछता है।
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आई बसंत और खुशियाँ लायी, कोयल गाती मधुर गीत,
प्यार के चारों और जैसे सुगंध छाई,
फूल अनेकों महके बसंत के,
बसंत आगमन की हार्दिक बधाई।
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हर कठिनाई का हल निकल ही जाता है, पतझड़ एक दिन बसंत में बदल ही जाता है।
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लो बसंत फिर आई, फूलों पर रंग लायी, बजे जल तरंग, मन पर उमंग छायी,
लो बसंत फिर आई।
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एक फूल धूप के बिना नहीं खिल सकता, और एक आदमी प्यार के बिना नहीं रह सकता।,
वसंत ऋतू की शुभकामनाएं।
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हम-रंग की है दून निकल अशरफ़ी के साथ, पाता है आ के रंग-ए-तलाई यहाँ बसंत।
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सर्दी को तुम दे दो विदाई वसंत की अब ऋतु है आई, फूलों से खुशबू लेकर महकती हवा है आई,
बागों में बहार है आई भंवरों की गुंजन है लाई,
उड़ रही है पतंग हवा में जैसे तितली यौवन में आई,
देखो अब वसंत है आई।
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मौसम ने छेड़ा यहाँ फिर वसंती राग, फूलो का मेला लगा, झूम उठे हैं बाग़,
प्रेम-प्यार बढे, बुझे द्वेष की आग,
वर्ष की है ये दुआ, धुलें क्लेश के दाग।
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